Hindi Poem - Aasmaan ki mazboori
एक उन्माद और एक मजबूरी,
एक हकीकत और एक कस्तूरी,
हर एक शब्द में मानो उपन्यास रहता हो,
फिर भी मूक है वो कहानी पूरी |
कवि की कल्पना की उड़ान थी छोटी,
या हकीकत की दीवारें थी कोटि,
जो रह गयी सिमट के वो आशाएं वहीँ,
जहाँ पर उम्मीदें थीं बोटी |
मगर यह क्या दिखा अभी,
आसमान भी दंग-सा हो गया,
उस अमानुष किले में,
मानो उत्सव-सा हो गया |
दो आँखें झांकती-सी,
सवालों को चीरती हैं,
हकीकत के उस अभेद्य चक्रव्यूह को,
ललकारती-सी प्रतीत होती हैं |
उन्हें आसमान भी दिखता है,
और तारे भी दिखते हैं,
इन्द्रधनुष के संग-संग,
उनके इरादे भी रंग बदलते हैं |
इन आँखों के पीछे का चेहरा ही नहीं दिखता,
बस आसमान को,
वरना उसकी नेक-दिल दुआंयें,
सिर्फ उन आँखों के लिए कमज़ोरी है |
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